नववर्ष २०१० December 31, 2009
Posted by aglakadam in aglakadam, Jara hut ke.Tags: 2010, aglakadam, new, new year 2010, year
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नववर्ष २०१० एक नए संकल्प और नए आगाज को लेकर आया है |हर नयी शुरुआत नई उमंगे लेकर आती है |जीवन में नयापन अति आवश्यक होता है |मनुष्य का यह स्वभाव है कि वो हमेशा कुछ नया पाना चाहता है |एक नयी सोच ,नई शुरुआत नई दिशा के साथ वह अपने जीवन को नया आयाम देना चाहता है |जानते हो इस समय के मापक वर्ष से हमे बड़ी मदद मिलती है |जीवन के इस ताने बाने में वर्षो का आना जाना हमे पुनरवलोकन का अवसर देते है |बीते हुए वर्ष के साथ हमने क्या खोया क्या पाया ,का हिसाब जरुर करना चाहिए |आने वाले नए साल का स्वागत करना एक अच्छी प्रथा है ,मगर यह रस्म तब तक पूरी नहीं होती ,जब तक हम अपने बीते हुए साल से कुछ शिक्षा न ले |
हर व्यक्ति में सुधार की गुंजाईश होती है और जिन्दगी सीखने वालो के लिए बहुत छोटी है | अगर आप अपने आप में कुछ सुधार करना चाहते है ,तो बस आज से ही शुरुआत कर दीजिये |आप अपने जामवंत स्वंय बने और स्वंय को प्रेरित करे |आज के दौर में
आपको स्वंय अपने आपको आगे बढाना होगा ,अपने भीतरे की आग को खुद जागृत करना होगा |एक ऐसी आग ,जो आपको किसी भी तरह के मुकाबले में डटे रहने का साहस दे सके |
इस नए वर्ष में आप अपने करियर की नई परिभाषा बनाये ,आप अपनी सफलता की परिभाषा खुद बनाये ,इन्ही शुभकामनाओ के साथ —–
Varsha Varwandkar ,Career Psychologist, http://www.aglakadam.com ,Raipur
सभी पाठकों को नए वर्ष की शुभकामनायें –
Dear Sir,
It is a very good and inspiring message from your side.
Thanks for the same.
I have created my blog
http://sumitchintawar.blogspot.com/
with some thoughts which seems to flow like fire, above and above regular thinking.
Pls ask your students to follow it and comment to improve further.If they think in similar lines/ above regular thoughts, do post it to sumitdchintawar@gmail.com
Regards,
Sumit C.
यह सचमुच बड़ा सराहनीय विचार है कि हमें अपने बीते समय की समीक्षा करते हुए आगे बढ़ना चाहिए । पर एक महत्वपूर्ण बात यह है कि समीक्षा की कसौटी क्या हो ? सफलता, ख्याति, समृद्धि या फिर और कुछ ?
मुझे लगता है कि समीक्षा की श्रेष्ठतर कसौटी यह है कि जीवन के उच्च मूल्यों में हमारी आस्था कितनी बढ़ी, हमारे भीतर से स्वार्थ कितना कम हुआ, हमारा प्रेम व्यष्टि से घटकर समष्टि में कितना बढ़ा ।
कुछ पंक्तियां नए वर्ष 2010 के अवसर पर:
वर्षों पर वर्षों की परतें, ज्यों ज्यों जमती जाती हैं ।
समय संकुचित होता जाता, दृष्टि विशद हो जाती है ।
अति द्रुत गति से वर्ष बीत, फिर नया वर्ष आ जाता है ।
वर्ष पुराना निज विस्मृति की, गर्तों में खो जाता है ।
बीते वर्ष-दिनों-मासों से, क्या पाया यदि याद रहे ।
बुद्धि तूलिका अनुभव मसि से, जीवन के सन्मार्ग कहे ।
तो जीवन का उपवन, सुख-सुमनों से सज्जित हो जाए ।
वर्ष-वर्ष का वृक्ष, सफलताओं के फल से भर जाए ।
आओ जीवन के हर पल को, दृढ़ आस्था के साथ बिताएं ।
नए वर्ष के स्वागत में हम, क्यों न हृदय में दीप जलाएं ।।
अवधेश कुमार पाण्डेय
कोलकाता, 5 जनवरी 2010